निशब्द

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यूँ तो किस्से बहुत हैं ज़हन में हमारे

खिड़कियां पीटते हैं, पुकारें मरते हैं
पर जब हिम्मत होती है उन्हें आज़ाद करूँ
कलम उठाउ और ख्यालो की आवाज करू

डर जाते हैं ये बिचारे
किसी बुज़दिल की तरह कांप के
किसी कायर की तरह हर के

बस सिसकियाँ सी रह जाती हैं
तब जेहन में ख्याल आता है
की बस यही तो सब तो नसीब है हमारे।

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