खामोशी

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वो निरन्तर कोलाहल नहीं,
वो झकझोर झंझावात नहीं हैं।

है भी कुछ बाकी तो,
बस एक निरन्तर सी खामोशी है।

निशब्द सी, निश्वास सी।
न भोर की शांति , न सांझ का सुकून।

किसी वियावां पड़े खंडहर सी
हाँ बस कुछ वैसी ही तो है।

न किसी तूफ़ान का डर,
न कुछ बचाने की फ़िक्र।

बस चलती जाती है,
बिना किसी खलल के, खामोशी।

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