तमाशा

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सुना था हमने लोगों से,
की गम का बनाते हैं लोग तमाशा तुम्हारे।

अच्छा है दिल की सिसकियाँ बेआवाज़ हैं
वर्ना मज़मा रहता जहां भर के तमाशबीनों का
आठों पहर चौखट पर हमारे।।

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