घर

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एक उमर गुजरी है तलाश में
एक अरसा गुजारा है इनतजार में,

भटके बहुत , तडपे बहुत,
अब आस भी टूट गई,
के कभी रुह को नसीब होगी
एक छांव, एक आशियाना।

आलिशान महल की हसरत ही कब थी,
तलाश तो बस एक घर  की।

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