बंजारन

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बंजारों की है जात अपनी।
ना रुतबा ना औकात अपनी।।

जहां मिली पनाह वहीं डेरा बना लिया।
तमाशा दिखाया, मन बहलाया।।
किसी को चार दिन की मोहलत मिली।
किसी ने सर झुका, जीवन बिता लिया।।

डेरे को जन्नत बनाया।
छोटे- बड़े ख्वाबो से सजाया।।
ना बना पाये फिर भी उसे अपना।
जिसे बनाने में खून पसीना लगाया।।

जब जिसका जी चाहा,
खुद को हमारा खुदा बना दिया।।
जब जी भर हुआ खेल के हमसे,
माटी के खिलौने सा तोड़ के बिखरा दिया।।

तिनका-तिनका जोड़ के गड़ा था जिस हस्ती को,
आज उस खुदा ने उसे भी मिटा दिया।।


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