हकीकत

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जाने का तेरे अफसोस न हुआ।

हुआ एहसास बस तेरे जाने का जब,
एक खलिश सी हुई, कुछ खाली सा हुआ,
दिल का एक कोना जैसे कुछ और सिमट सा गया।

तेरे जाने से कोई फ़र्क तो न पड़ा ज़िन्दगी पर
बस हाँ तेरी मौजूदगी भी अहम थी ,
इस बात का थोड़ा एहसास तो हुआ।

तुझको तो जुदा कर दिया ख़ुद से
पर खुद को तुझसे अलग कर ना पाए
ये एहसास भी तेरे जाने के बाद ही हो पाया।

ख्वाब समझते रहे तुझे हसीन हम,
जो नींद टुटते ही छूत जाता है सिरहाने पर जो,
नींद ही उड़ा दे, हकीकत निकला तू तो वो।

तू तो बढ़ गया राहों पर अपनी
बना के बस रहगुजर हमें,
और हम, जो दिल पत्थर का रखते थे,
तुझे भूला भी न पाए औऱ तू जो फूलों सा था
फ़साने नए गढ़ने लग गया।।

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