चैत्र महीने के मौसम में,
हुआ आगमन,
उसके खिलने की।
हरियाली आई पत्तियों में,
निकले नए डाल,
उगी नई शाखाएं भी।
जो बीते कुछ दिन,
कोमल सी
कली खिल आई।
धीरे धीरे,
रूप बदले अपने,
कली से फूल बन आई।
ये,
सुहाना सफर उसका,
देखती मैं बैठे खिड़की पे।
सोचती उनके परिवर्तन को,
फिर सोचती,
तुम्हारे आगमन को।
लगता जब तुम आओगे,
मैं भी,
इन गुलमोहर सी खिल जाऊंगी।
कभी तुम्हें देख,
मुस्काऊंगी,
तो कभी,
निराश हो जाऊँगी।
सोचती रहती,
दिन भर ये मैं,
तुम्हारे आने पे क्या कर जाऊँगी।
क्या कभी,
इन गुलमोहर की तरह खिल पाऊँगी
या सिमट कर रह जाऊँगी ?
...
Bạn đang đọc truyện trên: Truyen2U.Pro